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सियहरूई न ले जा हश्र में दुनिया-ए-फ़ानी सूँ / वली दक्कनी
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सियहरूई न ले जा हश्र में दुनिया-ए-फ़ानी सूँ
सिपहनामे कूँ धो ऐ बेखबर अंझुवाँ के पानी सूँ
शब-ए-ग़म रोज़-ए-इशरत सूँ बदल होवे अगर देखे
तिरी जानिब वो महर-ए-ज़र्रापरवर महरबानी सूँ
नजि़क जानाँ के गर तोहफ़ा लिजाना है तो ऐ नादाँ
लिजा गुलदस्ता-ए-आमाल बाग़-ए-जिंदग़ानी सूँ
नहीं है सीर यक साअत अगर मुल्क-ए-जवानी में
कहो क्या ख़िज़्र कूँ हासिल है उम्र-ए-जाविदानी में
अपस के सर पे मारा कोहकन ने तेशा-ए-ग़ैरत
हुआ जब ख़ुसरव-ए-आलम 'वली' शीरीं ज़बानी सूँ