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सियाने / सौरभ
Kavita Kosh से
खुद एक हैं।
हमें बाँटे जा रहे हैं
धर्म के नाम,जाति के नाम
और हम
बँट रहे हैं
खैरात की तरह
थोड़े इसके हिस्से में गिरे हैं
थोड़े उसके
रक्त पिपासु मच्छर
थोड़ा-थोड़ा रक्त पी मँडरा रहे हैं
कानों के पास
खोये हुए
न जाने किन सपनों में।