भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सियार और चाँदनी रात / विमल वनिक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूरनमासी की एक रात
बचपन के गाँव की वीथी पर
मुझे एक भी ब‘च्चा नहीं दिखा !
देखो, किस तरह चुपचाप सब सो रहे हैं—--
युगल हंस की तरह—

आँचल में संसार बाँधे हुए—
परम शांत !

इस मŠध्यरा˜त्रि में
नदी किनारे, घाट पर
नौकाएँ बहुत अकेली हैं,
कोई भी इस पार से उस पार
जाने वाला नहीं,

दूर कहीं एक शृगाल शब्ददहीन
जाग रहा है उन सबके लिए
जो बँधे पड़े हैं
किसी और ग्रह के !
  
मूल बंगला से अनुवाद : चंद्रिमा मजूमदार और अनामिका