सियार जब से शेर का हुआ सलाहकार है / पवनेन्द्र पवन
सियार जब से शेर का हुआ सलाहकार है
ये राजघर लुटेरों की बना पनाहगार है
ईमानदार आदमी तो बस सिपहसिलार है
विराजमान तख़्त पर पर हुआ रँगा सियार है
कुटुम्ब सारा मोतिए की मर्ज़ का शिकार है
है साँप रस्सी दिख रहा मयान अब कटार है
ये इक सिरे से दूजे तक धुआँ-धुआँ सुलग रही
ये ज़िन्दगी भी होंठों में दबा हुआ सिगार है
अमन की तू तलाश में न करना इनका रुख़ कभी
पहाड़ों में रही नहीं सुकूँ भरी बयार है
निशान तो रहेंगे ही तमाम उम्र के लिए
समय के साथ भर गई जो दिल की हर दरार है
अवाम की अवाम से अवाम के लिए लिए कहाँ
ये लोक सत्ता धन-कुबेरों की किराएदार है
न जाने किस ने ख़त लिखा कि लौट आ तू गाँव में
मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेक़रार है
गुलों को छोड़ आ बना लें रॉक गार्डन ‘पवन’
शिलाओं पे तो मौसमों की होती कम ही मार है