भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सियार जो हुँहुआता है / थेओ कांदीनास
Kavita Kosh से
सियार जो हुँहुआता है
और फन्दे को सूघँता है
हवा जो विलाप करती है
झोपड़ियों के आसपास
सर्दी जो तड़कती है
मुसाफ़िर के जूतों तले
जो खो गया है
वह दिल जो उसाँस भरता है
और डरता है हुँहुआते सियार का
शिकार होने से
सर्दी से जो तड़कती है
जूतों तले
अनुवाद : विष्णु खरे