भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सियासत को संभाला जा रहा है / भावना
Kavita Kosh से
सियासत को संभाला जा रहा है
घरों में सांप पाला जा रहा है
समुन्दर को उछाला जा रहा है
लहू ऑखों में डाला जा रहा है
चुनावों के नये इस सिलसिले में
घरों का भी निवाला जा रहा है
जिन्हें कल देवता कहते थे सारे
उन्हें घर से निकाला जा रहा है
सितारों से जड़ी इक पालकी में
मुहब्बत का शिवाला जा रहा है
सबूतों को मिटा डाला था पहले
रजिस्टर अब खॅगाला जा रहा है
हुनर लड़ने की हमने ही दिया था
हमीं पर रौब डाला जा रहा है