भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सियासत / विकास पाण्डेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सियासत को मेरा भी पैग़ाम दे दो।
इन्क़लाबियों में मेरा नाम दे दो।

बस भी करो मुझको खैरात देना,
हाथों को मेरे कोई काम दे दो।

अब मेरी बस्ती में मत बाँटो रुपये,
अम्न की सुबह, खुशनुमा शाम दे दो।

नहीं चाहिए मुझको हीरे-जवाहर,
पसीने का मेरे, उचित दाम दे दो।

मज़हब से तुमने बहुत खेल खेले,
इस फसाद को आख़िरी मुक़ाम दे दो।

बहुत हो चुके हैं यासिन और गिलानी,
भारत को फिर से 'अबुल कलाम' दे दो।

अम्न, भाईचारा और ईद ओ दीवाली,
तोहफ़े, मेरे मुल्क को तमाम दे दो।