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सियाह पट्टी / जुबैर रिज़वी

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हम अभी कुछ देर पहले साथ थे
शहर सारा यूँ लगा था
जैसे अपने ही तआक़ुब में
किरन सूरज की थामे चल रहा है
उस की आँखें बन के पत्थर उठ रही थीं
क़ुर्ब के आईने छन से टूट कर रेज़ा हुए थे
होंट अपने सिल गए थे
जिस्म अपने जल गए थे
हम बिछड़ के ना-मुरादों की तरह
वापस हुए तो
शहर सारा अजनबी सा हो गया है
उस की आखों पर सियाह पट्टी बँधी है