भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सिरोळी उडीक / चंद्रप्रकाश देवल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुगाळ रै दिनां
जळ-झूलणी इग्यारस नै ठाकुरजी
अंगोछा सूं ढांप्योड़ी
कांसी री थाळी में बैठ
म्हाराज रै हाथ में बाजती घंटी सागै
गंठौ बीड़ झीलता
अर छिलौछिल भरी बावड़ी
मिनखां रै हरख में हांसती
थबौळां चढ़ जावती
पछै कई दिनां
उघाड़ै अंगां
सियाळै पाज तावड़ै देवती
बावड़ी

कैदसाली रा आं दिनां
गुमसुम नीचला कुंड में सांवट
आपरौ पांणी
पड़ी रैवै छांनी-मांनी
बावड़ी

ठाकुरजी जळ-झूलणी रै दिन गंठौ बीड़ण सूं
नट जावै
हेटलै पगोत्यै बैठ
म्हाराज खुंणच्या में पांणी लेय
छांटौ देय देवै ठाकुरजी रै
अर रांम-रेवाड़ी
पाछी मिंदर आय जावै।

नीं ठाकुरजी कीं बोलै
नीं बावड़ी
दोनूं माडांणी आंख्यां मींच
आपौ-आपरी परकमा में सूय जावै
उडीकता धकलौ चोमासौ।