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सिर्फ़ छह फ़ीट अँधेरे में लिटा देता है / सूरज राय 'सूरज'

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सिर्फ़ छह फ़ीट अँधेरे में लिटा देता है।
वक़्त शाहों को भी औक़ात बता देता है॥

हादसा कोई भी गुज़रे जो शहर के बाहर
कौन है जो मेरे घर का ही पता देता है॥

मैं सबक लाख़ करूँ याद फ़रेबों के, मगर
क्लास में दिल मुझे पीछे ही बिठा देता है॥

माँ का लहजा है या किस्सा है या किस्से पर यक़ीं
रोज़ बच्चों को जो भूख़ा भी सुला देता है॥

वक़्त से ख़्वाहिशों का कैसा अजब है रिश्ता
कोई गूंगा किसी बहरे को सदा देता है॥

मैं बताऊँ ये यक़ीं टूटने का दर्द तुम्हें
ज़लज़ला है ज़मीनों-अर्श हिला देता है॥

मेरे बच्चे की निग़ाहों में मुझे रखने को
हर दुकांदार खिलौनों को छुपा देता है॥

रोज़ आँखों में पिरोता हूँ यक़ीं मैं उसकी
रोज़ टीवी मेरी बेटी को डरा देता है॥

ग़ैर की लौ पर यक़ीं ही न रहा "सूरज" को
दिल जलाता है चिराग़ों को बुझा देता है॥