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सिर्फ़ नाम ही रह जाना है / कोदूराम दलित

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सहकारिता से बाँधा बानर-भालू ने सेतु,
सहकारिता का यश, राम ने बखाना है ।
सहकारिता से ब्रजराज ने उठाया गिरि,
सहकारिता का यश, श्याम ने बखाना है ।
सहकारिता से लिया गाँधी ने स्वराज्य आज,
जिसके सुयश को तमाम ने बखाना है ।
उसी सहकारिता को हमें अपनाना है औ
अनहोना काम सिद्ध करके दिखाना है ।

तन–मन–धन से यहाँ का जन-जन अब,
निरमाण ही के पीछे हो गया दीवाना है ।
बन गए भाखरा-भिलाई से नवीन तीर्थ,
जिनसे कि मन-वांछित फल पाना है ।
चंद बरसों में ही चमक उठा देश यह,
मिला इसे जन–सहयोग मनमाना है ।
यहाँ की प्रगति का चमत्कार देख इसे,
दुनियाँवालों ने एक अचरज माना है ।

पर के अधीन रह पिछड़ा था देश यह,
सहकारिता से इसे आगे को बढ़ाना है ।
योजनाएँ अपनी सफल कर–कर अब,
उन्नति के शृंग पर इसको चढ़ाना है ।
अन्न–वस्त्र–घर आदि की समस्या हल कर,
अविलम्ब सारे भेद-भाव को भगाना है ।
क्रांति एक लाना है औ गिरे को उठाना है औ
रोते को हँसाना है औ सोते को जगाना है ।

देने का समय आया, देओ दिल खोल कर,
बंधुओं, बनो उदार, बदला जमाना है ।
देने में ही भला है हमारा औ तुम्हारा अब,
नहीं देना याने नई आफ़त बुलाना है ।
देश की सुरक्षा हेतु स्वर्ण देके आज हमें,
नए-नए कई अस्त्र-शस्त्र मँगवाना है ।
समय को परखो औ बनो भामाशाह अब,
दाम नहीं, अरे, सिर्फ़ नाम रह जाना है ।