भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिर्फ़ स्मृतियाँ नहीं / संध्या गुप्ता
Kavita Kosh से
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
बरसों बाद
वह भरी दोपहरी में एक दिन मेरे घर आया
इसे संभालो - ये कविताएँ हैं तुम्हारी
मैं हार गया !!
उसने दरवाज़े के नीचे पुराने दिनों की तरह
चप्पल छोड़े
ये क़िताबें रख लो
यह पेन भी
अब अपने दुःख की तरह संभाले नहीं संभलता
यह सब
यह आदमी ही है
जो संजोकर सिर्फ़ स्मृतियाँ ही नहीं रखता !