भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिर्फ / नीता पोरवाल
Kavita Kosh से
सिर्फ सीखना होगा हमें
“भूलना ”
मसलन
शिकायतो की फेहरिस्त में
गँवाए गए
और गँवाए जा रहे
उन बेशुमार लम्हों को
यकीन है मुझे
बेशक एक बार ही सही
फिर पुकार सकेंगे
एक दूसरे का नाम
उसी शिद्दत से हम
और इस दफ़ा
“भूलना” एक खामी नहीं
बेइंतेहा खूबसूरत कमाल होगा
यकीनन!