सिर पर दोगढ़ ठा नणद री / हरियाणवी
सिर पर दोगढ़ ठा नणद री ठाले नेजू बाल्टी
हमतो चलैंगे थारे साथ भावज री ना ठावैंगे नेजू बाल्टी
उल्टी दोगढ़ तार बिखेरी मैं तो भीतर बड़ कै रो पड़ी
कोरा सा कागज मंगा दिखे मनै लिख कै गेरा अपणे बीर पै
दिया डाकिये के हाथ डाकिये रे जा दिये मेरे बीर नै
काली सी मोटर जोड़ दिखे री वो तो आण डटा धमसाल मैं
साची बताए मौसी के दुख दिया मेरी बाहण ने
काम करे ना एक मेल सिंह कहूं तो आवै खाण ने
साची साच बता बसन्ती के दुख दिया तेरे गात ने
काम करूं दिन रात मेल सिंह रोट्टी ना देंदी खाण ने
गठडी मुठडी बांध बसन्ती होले मेरी साथ ने
हम तो चले अपणे देस नणद री लोटदी फिरो धमसाल में
चाली जाइए मेरी भावज दिखे री में तो हट के ब्याहूं अपणै बीर ने
नौ सौ बीघे जमीन बसन्ती आधी राम करा लिये
नाम कराऊं ना मूल मेल सिंह बासी रोटी दे दिये।