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सिलसिला टूटा तो बनकर दास्ताँ रह जाएगा / शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
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सिलसिला टूटा तो बनकर दास्तां रह जाएगा
ख्वाहिशों का मिटके भी कुछ तो निशाँ रह जाएगा
हाँ, मैं तुझसे हूँ, मगर मेरा भी है अपना वजूद
पत्ते गिर जाएँगे तो, साया कहाँ रह जाएगा
दर्द की ख़ातिर है दिल, और दिल की ख़ातिर दर्द है
दर्द से ख़ाली हुआ तो, दिल कहाँ रह जाएगा
टूटकर गिरते रहे यूँ ही, जो मेरे बाद भी
चाँद तारों को तरसता आसमाँ रह जाएगा
मैं तेरा अपना ही हूं, इस बात का शाहिद<ref>गवाह</ref> यहाँ
तेरे कूचे में मेरा , खाली मकाँ रह जाएगा
शब्दार्थ
<references/>