सिलसिला रौशन तजस्सुस का उधर मेरा भी है / मनचंदा बानी
सिलसिला रौशन तजस्सुस<ref>उत्सुकता</ref> का उधर मेरा भी है ।
ऐ सितारो ! इस ख़ला में इक सफ़र मेरा भी है ।
चार जानिब ख़ैंच दीं उसने लकीरें आग की
मैं कि चिल्लाया बहोत बस्ती में घर मेरा भी है ।
जाने किसका क्या छुपा है उस धुएँ की सफ़<ref>पंक्ति</ref> के पार
एक लम्हे का उफ़क उम्मीद भर मेरा भी है ।
राह आसाँ देखकर सब ख़ुश थे फिर मैंने कहा
सोच लीजे, एक अंदाज़-ए-नज़र मेरा भी है ।
अब नहीं है उसकी खिड़की के तनाज़ुर<ref>परिप्रेक्ष्य</ref> में भी चाँद
एक पुरइसरार<ref>रहस्यमय</ref> मौसम से गुज़र मेरा भी है ।
ये बिसात-ए-आरज़ू<ref>कामना का शतरंजी खेल</ref> है इसको यूँ आसाँ न खेल
मुझसे वाबस्ता<ref>संबंधित</ref> बहुत कुछ दाँव पर मेरा भी है ।
जीने मरने का जुनूँ दिल को हुआ 'बानी' बहोत
आसमाँ इक चाहिए मुझको, के सर मेरा भी है ।