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सिलसिला / धूमिल
Kavita Kosh से
हवा गरम है
और धमाका एक हलकी-सी रगड़ का
इंतज़ार कर रहा है
कठुआये हुए चेहरों की रौनक
वापस लाने के लिए
उठो और हरियाली पर हमला करो
जड़ों से कहो कि अंधेरे में
बेहिसाब दौड़ने के बजाय
पेड़ों की तरफदारी के लिए
ज़मीन से बाहर निकल पड़े
बिना इस डर के कि जंगल
सूख जाएगा
यह सही है कि नारों को
नयी शाख नहीं मिलेगी
और न आरा मशीन को
नींद की फुरसत
लेकिन यह तुम्हारे हक में हैं
इससे इतना तो होगा ही
कि रुखानी की मामूली-सी गवाही पर
तुम दरवाज़े को अपना दरवाज़ा
और मेज़ को
अपनी मेज कह सकोगे।