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सिलसिला / विजेन्द्र अनिल
Kavita Kosh से
मेरे लिए हर मौसम
आग का मौसम है
हर बेबस आवाज़
सफ़र का पैग़ाम
एक इम्तिहान
इसीलिए
मैंने हर मौसम में
आग के गीत
लिखे हैं
हर बेबस चेहरे ने
मुझे ताक़त दी है
और हर मोड़ पर
मैंने ख़ुद को जाँचा है
यह सिलसिला
वर्षों से चल रहा है
तब तक चलता रहेगा
जब तक झोपड़ियाँ
धुआँती रहेंगी
बेसहारा आवाज़ें चीख़ती रहेंगी
और मुल्क की
ख़ुशहाली के नाम पर
वक़्त के सौदागर
बारूग की खेती करते रहेंगे