भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते-जाते / फ़राज़
Kavita Kosh से
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते-जाते
वरना इतने तो मरासिम थे कि आते-जाते
शिकवा-ए-जुल्मते-शब से तो कहीं बेहतर था
अपने हिस्से की कोई शमअ जलाते जाते
कितना आसाँ था तेरे हिज्र में मरना जाना
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते-जाते
जश्न-ए-मक़्तल ही न बरपा हुआ वरना हम भी
पा बजोलां ही सहीं नाचते-गाते जाते
उसकी वो जाने, उसे पास-ए-वफ़ा था कि न था
तुम 'फ़राज़' अपनी तरफ से तो निभाते जाते