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सिलाई / दिलीप चित्रे
Kavita Kosh से
मन प्राणों की सुई
ईकाग्र सफ़ाई से लगाती
जनम-जनम का टाँका
मौन कपड़ा, शान्त धागा
मेरे सब-कुछ की सिलाई
चुस्त बुनाई
जैसे हथेली में हथेली
हँसी में
रहस्य
चमक गए दाँत
जैसे रचना
अब सुई की आँख में
पिरोया
आशीर्वाद का झरना
समस्त स्तब्ध
फैलाव
एकटक
पीठ किए।
अनुवाद : चन्द्रकांत देवताले