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सिला कब ये अहले हुनर मांगते हैं / सर्वत एम जमाल
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सिला कब ये अहले हुनर मांगते हैं ,
मगर जितने भी हैं सिफर, मांगते हैं ।
मेरे पांव छालों में डूबे हैं, फिर भी
ये मुझसे मुसल्सल सफर मांगते हैं ।
अजब लोग हैं, झूट बोलू तो कैदी ,
मैं सच बोलता हूँ तो सर मांगते हैं ।
कोई तो बताये ये क्या माज़रा है ,
सुना है अंधेरे सहर मांगते हैं ।
वो हालात हैं अब कि हम ही नहीं.सब ,
वतन में वतन की ख़बर मांगते हैं ।
किसे छोड़ दें और किसे प्यार बांटे ,
ये सोदा सभी टूट कर मांगते हैं ।
हैं ऐसे भी हातिम जो सर्वत यहाँ पर,
उधर बांटते हैं , इधर मांगते हैं।