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सिलेसियाई बुनकरों का गीत / हेनरिख हायने

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उनकी आँखें सूखी हैं या आँसू नज़र धुँधलाते हैं,
दाँत कसकर भींचे हुए, वे अपने करघे चलाते हैं ।
‘हम बुन रहे कफ़न, ओ जर्मनी ! तेरे लिए,
हम बुन रहे हैं तिहरा अभिशाप तेरे लिए
                          हम बुन रहे, हम बुन रहे ।

‘एक अभिशाप उस ख़ुदा के लिए, जिसे हम रोते रहे
भूख से मरते रहे और जाड़ों में खुले सोते रहे,
उम्मीदें बाँधीं, दुआएँ कीं, पुकारा उसे व्यर्थ ही,
वह हँसा हम पर, किया उपहास, औ' बढ़ाया दर्द ही ।
                          हम बुन रहे, हम बुन रहे ।

‘एक अभिशाप राजा के लिए, जो है अमीरों का ख़ैरख़्वाह,
ग़रीब-गुरबा के दुख को सुनकर, जो लेता है उबासियाँ,
खसोटता है टैक्स जो बंजरों-मड़इयों से,
और हमें मरवाता है भाड़े के सिपइयों से।
                          हम बुन रहे, हम बुन रहे ।

‘एक अभिशाप उस पितृभूमि के लिए जिसे मानते थे अपनी,
जहाँ सिर्फ़ दुष्टता और बुराई ही है पनपी,
जहाँ मसल जाती हैं कलियाँ खिलने से पहले,
जहाँ गन्दखोर कीड़े मुटाते हुए फैले।
                          हम बुन रहे, हम बुन रहे ।

खड़कता है करघा और घूमती है भरनी,
दिन-रात हम बुन रहे तेरा सर्वनाश, ओ जर्मनी,
‘हम बुन रहे कफ़न, ओ जर्मनी ! तेरे लिए,
हम बुन रहे हैं तिहरा अभिशाप तेरे लिए
                          हम बुन रहे, हम बुन रहे ।


हाइनरिष हाइने की कविता का अँगेज़ी से अनुवाद : सत्यम