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सिल्वर स्क्रीन / हेमन्त कुकरेती

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(रंगकर्मी स्व. मनोहर सिंह की स्मृति में)

विदूषक अपनी जगह से उठे और चले आये जीवन में
एक समय में जो बुद्धू मशहूर थे
अब उनकी पैंतरेबाजी देखते ही बनती थी

बुरे आदमी समाज के मंच पर सबसे आगे थे
आलोकवृत्त से घिरे वे अपने फैलाये अँधेरे में धधक रहे थे
कुलीन भाषा उनकी भव्य उपस्थिति में डरा रही थी सबको
सबको उकसाया उन्होंने कि
सफलता की ऊँचाइयाँ छूने के लिए गिरना बेहद ज़रूरी है
और इसकी कोई इन्तिहा नहीं है

जिसे केन्द्रीय चरित्र कह रहा था पटकथा लेखक
वह हारा हुआ सताया आदमी था
अकसर चुप देखा गया उसे या रोता हुआ
लड़ना चहता था वह पर उससे कहा गया: प्रार्थना करे
थोड़ा-सा प्यार चाहता था जरा-सी इज़्ज़त
उसे बताया गया कि नफ़रत करना सीखे
इज़्ज़त की ज़रूरत क्या है अगर लोगों को डराना सीख लो

मजे की बात कि यह सब पर्दे के पीछे से दिेय गये आदेश थे
दर्शक तो दर्शक लेखक तक को पता नहीं था
कौन है यह किसकी आवाज़ है
निर्देशक समझता था यह लेखक का खेल होगा कोई
लेखक मान बैठा था निर्देशक की शरारत होगी

अपने अपमान को पीता मनुष्य जितना सच्चा अभिनय करे
छुपता नहीं है उसका सच
ऐश्वर्य को पशु भी पहचानते हैं
अपने समय का अक्षत सौन्दर्य
सस्ते वेश्यालयों में पनाह माँगते देखा गया
या उस निर्माता की गोद में जो स्मगलर था
पौरुष के अतुल प्रतीक बूढ़े हो गये बदल गये विवश पिताओं में
उनके लिए भूमिका लिखी जाने लगीं
जिन्हें अगली सदी में अवतार लेना था
चमचमाते नक्षत्र बुझ गये
बूढ़े अदाकारों का मेकअप उनकी झुर्रियाँ उभारने लगा
कारगर नहीं रहे चण्डूखाने के शिगूफे़ और अख़बारों की सुर्खियाँ
मिट्टी हो गयी सारी साज-सँभाल
बहुत कम यादों में बचा हुआ वह जादू जैसा अभिनय
मामूली काम पाने की गुहार में दब गया

महान प्रेक्षालय हो गये जर्जर
जिन्हें नवाजा गया था पुरस्कारों से फालतू भीड़ में चुप हैं
एक ऐसा हुजूम घेरे हुए है जिसकी नहीं है कोई शक्ल
हरेक दूसरे से छीनने-लूटने की जुगत में है
खुद बचे रहने के लिए किसी को मारने के शोर में
हिंसा का मलबा इकट्ठा हो रहा है
स्त्रियों का पवित्र शोक रोमांचित नहीं करता
बच्चों की लुकाछिपी लगते हैं प्रेम के बिम्ब

क्लाइमेक्स में जो दिल चीरकर दिखा रहा है
वह मूकाभिनय नहीं कर रहा
उसकी आवाज़ दबा दी गयी है
किसी और की आवाज़ में रुलाई बनकर
फूट रहा है उसका स्वगत

कहानी कहाँ है पूरी एक अधूरा आलेख है जीवन
जिसके पात्र ढूँढ़े जा रहे हैं: घटनाओं को अभी घटना है

गूँजती आवाज़ खो गयी है उजाले में
रोशनी बन गयी है धुआँ...