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सिवपूजा / पतझड़ / श्रीउमेश
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दिनभर आज उपास रखी केॅ, सिव-पूजा होतै भरपूर।
चारोपहर रात-भर होतै-पूजा, चढ़तै आँक धथूर॥
क्वारी लड़कीं पूजै छै, ई कही-कही केामल वानी।
”हमरा अच्छा बोॅर दिहोॅ हे सिवसंकर ओढर दानी॥
ढोल ढाक, तुतरु सें गम-गम करै रहै हमरोॅ अस्थान।
पतझड़ के मनहूस दिनों में लागै छै सब कुछ बेजान॥