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सिहर जाता हूँ, ऐसा बोलता है / वीनस केसरी
Kavita Kosh से
सिहर जाता हूँ, ऐसा बोलता है
वो बस मीठा ही मीठा बोलता है
समय के सुर में बोलेगा वो इक दिन
अभी तो उसका लहजा बोलता है
ये उसकी तिश्नगी है या तिज़ारत
वो मुझ जैसे को दरिया बोलता है
वो सब कुछ जानता है और फिर भी
अँधेरे को उजाला बोलता है
पुरानी बात है, सब जानते हैं
नया मुर्गा ही ज्यादा बोलता है
उसे खुद ही नहीं मालूम होता
नशे में मुझसे क्या क्या बोलता है
मेरी माँ आजकल खुश हैं इसी मे
अदब वालों में बेटा बोलता है