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सीखड़ली / कानदान कल्पित

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डब-डब भरिया, बाईसा रा नैण ,
चिड़कली रा नैण,लाडलडी़ रा नैण,
तीतरपंखी रा नैण,सूवटडी़ रा नैण,
दो’रो घणो सासरियो॥
 
मायड़ जाण कळेजै री कोर,फ़ूल माथै पांख्यां धरी।
माथै कर-कर पलकां री छांय,पाळ-पोस मोटी करी॥
राखी नैणां री पुतळी जाण,मोतीडा़ सूं महंगी करी।
कर-कर आघ,लडाई घण लाड,
भरीजी मन गाढ,
जीवण मीठो ज़हर पियो,
दो’रो घणो सासरियो॥
 
डूबी सोच समंदडै़ रै बीच,तरंगा में उळझ परी।
जाणै मोत्यां बिचली लाल,पल्लै बंधी खुल परी।
भरियो नैणां ममता-नीर,लाडलडी़ नै गोद भरी।
जागी-जागी कळैजै री पीड़,
हिय सूं लीवी भीड़,
गरळ-गळ हिवडो़ भरियो,
दो’रो घणो सासरियो॥
 
भाभीसा काढ काजळियै री रेख,संवारी हिंगळू मांगड़ली।
बीरोसा लाया सदा सुरंगो बेस,ओढाई बोरंग चूंदड़ली।
बाबोसा फ़ेरियो माथै पर हाथ,दिराई बाई नै सीखड़ली।
ऊभो-ऊभो साथणियां रो साथ,
आंसूडा़ भीज्यो गात,
नैणां झड़ ओसरियो,
दो’रो घणो सासरियो॥
 
करती कळझळ हिवडै़ रा दो टूक,कूंकूं पगल्या आगै धरिया ।
कायर हिरणी-सी मुड़-मुड़ देख ,आंख्यां माथै हाथ धरिया ।
मुखडो़ मुरझायो बिछडंतां आज ,रो-रो नैण राता करिया ।
चांद-मुखडै़ उदासी री रेख,
डुसक्यां भरती देख,
सहेल्यां गायो मोरियो,
दो’रो घणो सासरियो॥
 
रथडै़ चढती पाछल फ़ोर,सहेल्यां नै झालो दियो।
कूंकूं-छाई बाजर हरियै खेत,जाणै जियां झोलो बियो|
छळक्या नैण घूंघटियै री ओट,काळजो काढ लियो।
काळी-काळी काजळियै री रेख,
मगसी पड़गी देख,
नैणां सूं ढळक्यो काजळियो,
दो’रो घणो सासरियो॥
 
मनण-रूठण रा आणंद उछाव,हियै रै परदै मंडता गिया।
सारा बाळपणै रा चित्राम,नैणां आगै ढळता गिया।
बिलखी मावड़ नै मुड़ती देख, विकल नैण झरता गिया।
करती निस-दिन हंस-किलोळ,
बाबोसा-घर री पोळ,
ढ्ल्या रो रमणो छूट गियो,
दो’रो घणो सासरियो॥
 
लागी बालपणै री प्रीत,जातोडी जीवडो़ दो’रो कियो।
रेसम रासां नै दी फ़णकार,सागडी़ नै रथडो़ खड़यो।
धरती अम्बर रेखा रै बीच,सोवन सूरज डूब गियो।
दीख्या-दीख्या सासरियै रा रूंख,
रेतड़ली रा टूंक,
सौ कोसां रहग्यो पीवरियो,
दो’रो घणो सासरियो॥
 
डब-डब भरिया, बाईसा रा नैण,
चिड़कली रा नैण,लाडलडी़ रा नैण,
तीतरपंखी रा नैण,कोयलडी़ रा नैण,
सूवटडी़ रा नैण,दो’रो घणो सासरियो॥