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सीखने से दिल को कुछ मतलब नहीं / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'

सीखने से दिल को कुछ मतलब नहीं
दिल की दुनिया है कोई मकतब नहीं

दूर मुझसे तेरी रहमत रब नहीं
और कुछ दरकार मुझको अब नहीं

नींव के पत्थर खिसकने लग गये
कुछ इमारत का भरोसा अब नहीं

हो चुके हैं काम पूरे ज़ीस्त के
अब मेरे जीने का कुछ मतलब नहीं

झूठ का है बोल बाला आजकल
सच के साथी तो हैं पर सब नहीं

आंख ने कुछ बिन कहे ही कह दिया
आंख कह सकती है जो वो लब नहीं

क्यों कोई मेरे लिए बेताब हो
अब किसी को मुझसे कुछ मतलब नहीं

इंसानियत इंसान की पहचान है
आदमीयत का कोई मतलब नहीं।