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सीढ़ियों की महायात्रा / कुमार रवींद्र
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सगुनपंछी !
महानगरी में सँभलकर पाँव रखना
पेड़ सारे हैं फ़रेबी
सभी पर लासा लगा है
चतुर जन रहते यहाँ पर
नहीं कोई भी सगा है
फल यहाँ के हैं विषैले
सँभलकर तुम इन्हें चखना
हर तरफ मीनार ऊँची
पींजरे-ही-पींजरे हैं
वक़्त खोटा - काम खोटा
लोग कहने को खरे हैं
सीढ़ियों की महायात्रा
और टूटा हुआ टखना
इस शहर के मकड़जालों में
कहीं तुम फँस न जाना
दूर इस पगले शहर से
पंछियों का है ठिकाना
यहाँ नाहक पूछते तुम
कहाँ रहते राम-लखना