Last modified on 10 जुलाई 2015, at 14:08

सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ा / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ा, लिया शिखर को चूम।
शून्य रहीं उपलब्धियाँ, उसी बिंदु पर घूम॥
उसी बिंदु पर घूम, हाथ कुछ लगा न अब तक।
बहकाओगे मित्र, स्वयं के मन को कब तक।
'ठकुरेला' कविराय, याद रखती हैं पीढ़ी।
या तो छू लें शीर्ष, या कि बन जायें सीढ़ी॥