सीतल अमुनी राम सीतल जमुनी / अंगिका लोकगीत
घर में बेटी विवाह के योग्य हो गई है। फिर भी, उसका पिता सुख की नींद ले रहा है। बेटी उससे लड़का खोजने को कहती है। वह सब जगह से घूम आता है। कहीं उसे योग्य वर नहीं मिलता। अंत में, बेटी ही अपने योग्य वर का निर्देश करती है तथा लड़के के अनुरूप ही मंडप आदि बनवाने का भी अनुरोध करती है।
सीतल अमुनी<ref>‘जमुनी’ का अनुरणानात्मक प्रयोग</ref> राम सीतल जमुनी, बहि रे<ref>बह गई</ref> गेल सीतल बतास हे।
ओहि तरँ पलँगा बिछाबल जी बाबा, आबि गेला<ref>आ गया</ref> सुखासन<ref>नरम बिछावन पर सुख की नींद</ref> नीन हे॥1॥
सुपती खेलैतेॅ गेली बेटी कवन बेटी, काहे बाबा सुतहो<ref>सोये हो</ref> निचिंत हे।
जिनखाहुँ<ref>जिनके</ref> घरे बाबा धिआ रे कुमारी, सेहो कैसेॅ सूतै निचिंत हे॥2॥
हाथ लेल लाठी बान्ही लेल मुरेठिया, चलि भेलै मगहा मुँगेर हे।
उत्तर खोजला राम दखिन खोजलाँ, बैठी रे गेलाँ देहरी झमाय हे॥3॥
सुपती खेलैतेॅ गेली बेटी कवन बेटी, काहे रे बाबा बैठहु झमाय हे।
तोहरो जुगुति बेटी बरो नहिं पैलाँ, पैलाँ ठक बनिहार हे॥4॥
तीनि भुवन सेॅ घुमि घामि जब ऐलाँ, बैठी रे गेलाँ देहरी झमाय हे॥5॥
जाहो जाहो बाबा अजोधा नगरिया, जहाँ बसे राजा दसरथ हे।
राजा रे दसरथ केरऽ दोइ रे बलकबा, साँवरे गोरे बर सोहान<ref>सुहावना</ref> हे।
हुनकॉ<ref>उन्हें; उनको</ref> जी बाबा, तिलक चढ़ाबऽ हे॥6॥
ऊँच<ref>ऊँचा</ref> कै मड़बा छरैहऽ<ref>छवाना</ref> जी बाबा, ठेकी जैतअ<ref>छू जायगा</ref> कलस हमार हे।
राम हाथें सेनुर दिलाय हे॥7॥