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सीता: एक नारी / तृतीय सर्ग / पृष्ठ 5 / प्रताप नारायण सिंह

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अभिषेक के उपरांत मंगल कामना करते हुए
होकर प्रफुल्लित अवध से प्रस्थान सब राजा किए

आरम्भ फिर जीवन हुआ था, साथ नव-दायित्व के
नूतन व्यवस्था के क्रियान्वयन और स्थायित्व के

अब तक रहा था राज्य संचालन नृपों के हाथ में
पर राम चलना चाहते लेकर प्रजा-मत साथ में

जिससे सभी के पास ही अभिव्यक्ति का अधिकार हो
हित आम जन का, राज्य के उत्कर्ष का आधार हो

दुःख क्लेश की छाया कहीं भी राज्य में किंचित न थी
खुशहाल कोशल की प्रजा होती कभी चिंतित न थी

अनुरक्त नित गुरु शिष्य रहते पठन-पाठन में जहाँ
थे नित्य ही आचार्य, ऋषिजन शास्त्र मंथनरत वहाँ

"धन, शस्त्र, भुजबल का प्रदर्शन था नहीं बिल्कुल कहीं
यद्यपि कमी संपन्नता औ’ वीरता की थी नहीं

सत-धर्म और समाज स्वीकृत आचरण करते सभी
मन में किसी के द्रोह, इर्ष्या, छल नहीं उपजा कभी