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सीता: एक नारी / षष्टम सर्ग / पृष्ठ 4 / प्रताप नारायण सिंह

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लंबी अवधि तक व्यवस्था कोई यथावत यदि चले
तो नित्य खर-पतवार दोषों के कई उसमें पलें

इस हेतु ही करना निरीक्षण समय पर अनिवार्य है
मानव धरम रक्षार्थ चिंतन ऋषिगणों का कार्य है

हैं नित रमे बाल्मीकि सीताराम-गाथा-सृजन में
हो शुद्धता मेरी प्रमाणित चतुर्दिक इस भुवन में

पुनरावलोकन कर रहे वे सृष्टि के व्यवहार का
नव नियम प्रतिपादित करेंगे धर्म के आधार का

शिक्षित करेंगे आमजन को, ऋषि भरेंगे चेतना
है ज्ञात उनको मनुज की अति सूक्ष्मतर संवेदना

अवगत कराएँगे सभी को सत-असत के ज्ञान से
स्वाधीन होंगे अवध-जन तब रूढ़ि औ’ अज्ञान से

है अवध में अधिकार मत का आज सबके ही लिए
कर्तव्य का भी इसलिए तो बोध होना चाहिए

शिक्षा कराती बोध है दायित्व का, निज कर्म का
करना विवेचन काल के अनुरूप धर्माधर्म का

हैं गौण राजा और रानी राम के साम्राज्य में
मत आमजन का मान्य होता अवध के नव-राज्य में

किस राज्य में वनवास करती है भला नरपति प्रिया
नृप कौन जिसने मान जनमत, कष्ट है खुद को दिया