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सीता: एक नारी / सप्तम सर्ग / पृष्ठ 1 / प्रताप नारायण सिंह

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निर्विघ्न सकुशल यज्ञ मर्यादा पुरुष का चल रहा
किस प्राप्ति का है स्वप्न उनके हृदयतल में पल रहा ?

अर्धांगिनी के स्थान पर अब तो सुशोभित मूर्ति है
यह लोक-भीरु राम के किस कामना की पूर्ति है?

अति प्रज्वलित बहु यज्ञ कुण्डों से लपट है उठ रही
समवेत पाठन से ऋचा के गूँजते अम्बर मही

स्वाहा स्वरों के साथ समिधाएँ निरंतर पड़ रहीं
पर ताप यह हिय-दग्धता के सामने कुछ भी नहीं

हैं पुत्र आनंदित बहुत ही अंक में निज तात के
विस्तार जैसे लग रहे वे राम के ही गात के

पाकर उन्हें परिजन सभी अत्यंत ही हर्षित हुए
अवधेश उनको निरखते अति नेह लोचन में लिए

वन मध्य वे अपने पराक्रम का प्रथम परिचय दिए
बंधक बनाकर अश्व, सेना को पराजित जब किए