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सीता: एक नारी / सप्तम सर्ग / पृष्ठ 2 / प्रताप नारायण सिंह

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संदेह उपजा था हृदय में जब मिली थी सूचना
प्रस्तुत हुआ है कौन करने को समर में सामना

गायन सुना ऋषि-काव्य का निज पुत्र से जब राम ने
संदेह कोई भी नहीं फिर टिक सका था सामने

फल पा लिया था यज्ञ का ज्यों पूर्णता के पूर्व ही
उनके हृदय-सर में खिला था सुख-सरोज अपूर्व ही

बाल्मीकि मेरी शुद्धता की घोषणा करने खड़े
ऋषि, मुनि तथा गन्धर्व सबके चक्षु हैं मुझ पर गड़े

राजा नहीं, ऋषि अपितु होता है नियंत्रक धर्म का
अधिकार में उनके विवेचन है सभी के कर्म का

हे मात! भर लो अंक में, अब लालसा मन में नहीं
इस जगत के सुख भोग की तो तनिक भी बाकी रही