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सीत-घाम-भेद खेद-सहित लखाने सब / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

सीत-घाम-भेद खेद-सहित लखाने सब
भूले भाव भेदता-निषेधन बिधान के ।
कहै रतनाकर न ताप ब्रजबालनि के
काली-मुख ज्वालना दवानल समान के ॥
पटकि पराने ज्ञान-गठरी तहाँ ही हम
थमत बन्यौ न पास पहुँचि सिवान के ।
छाले परे पगनि अधर पर जाले परे
कठिन कसाले परे लाले परे प्रान के ॥111॥