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सीधे सादे शब्दों में / गिरधारी सिंह गहलोत

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सीधे सादे शब्दों में
कह देता हूँ!
मुझको प्यार है!!
तुमसे प्यार है!!!

क्यों नदिया सागर के किस्से?
क्यों चाँद-चकोर का ज़िक्र करूँ?
क्यों तारों गगन से हो तुलना?
क्यों शलभ-अगन की बात करूँ?
क्यों कथा हो चातक- स्वाति की?
क्यों गाथा दीपक -बाती की?
क्यों बादल और मयूरा की?
क्यों बात हो राधा -मीरा की?
चुपके चुपके कानों में
कह देता हूँ!
मुझको प्यार है!!
तुमसे प्यार है!!!
सीधे सादे...
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मैं राम बनूँ तू सीता क्यों?
मैं कृष्ण बनूँ तू राधा क्यों?
मैं मजनूं बनूँ तू लैला क्यों?
तू हीर बने मैं रांझा क्यों?
इनके अपने अपने किस्से
अपना तो अलग फ़साना है!
अब प्यार मेँ तेरे ही लुटकर
बस नाम अमर कर जाना है!
अब कफ़न बांध और ताल ठोक
कह देता हूँ!
मुझको प्यार है!!
तुमसे प्यार है!!!
सीधे सादे...
   
आके तेरे सपनों में
कह देता हूँ!
मुझको प्यार है!!
तुमसे प्यार है!!!
सीधे सादे...
   
जब लोग समझ ही न पाएं
क्यों थोपूं मैं कुछ उपमाएं?
भावों को उलझा शब्दों में
क्यों गीत प्रतीकों मेँ गायें?
शब्दों को पहना अलंकार
किसलिए शिल्प से हो श्रृंगार
जब बात कथ्य की है सारी
कहना तो ढाई अक्षर प्यार
आके तेरे सपनों में
कह देता हूँ!
मुझको प्यार है!!
तुमसे प्यार है!!!

    
सीधे सादे शब्दों में
कह देता हूँ!
मुझको प्यार है!!
तुमसे प्यार है!!!