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सीमाब पुश्त-ए-गर्मी-ए-आईना दे, हैं हम / ग़ालिब

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सीमाब<ref>पारा(मरक्यूरी)</ref> पुश्त-गर्मी-ए-आईना<ref>आईने के चेहरे को गरमी</ref> दे, हैं हम
हैरां किये हुए हैं दिल-ए बे-क़रार के

आग़ोश-ए-गुल<ref>गुलाब का आलिंगन</ref> कुशूदा<ref>खोलना, खुली हुई</ref> बरा-ए-विदाअ़<ref>विदाई के लिए</ref> है
ऐ अ़नदलीब<ref>बुलबुल</ref>! चल कि चले दिन बहार के

यूं बाद-ए-ज़ब्त-ए-अश्क<ref>आँसूओं को काबू करके</ref> फिरूं गिरद यार के
पानी पिये किसू<ref>किसी</ref> पे कोई जैसे वार के

बाद अज़<ref>आज</ref> विदाअ़-ए-यार ब ख़ूं दर तपीदा हैं
नक़श-ए-क़दम हैं हम कफ़-ए-पा-ए-निगार<ref>निगार के तलवे का निशान</ref> के

हम मश्क़-ए-फ़िक्र-ए-वसल-ओ-ग़म-ए-हिज़्र से असद
लायक़ नहीं रहे हैं ग़म-ए रोज़गार के

शब्दार्थ
<references/>