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सीमा का सुख / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल

सोचती रही
सुख है
यही सुख है

जब सीमा में थी

तोड़ दी जब सीमा
तो जाना
नहीं है सुख –कहाँ
कहाँ-
है सुख
तभी जाना।