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सीमा हो तो नीलगगन की / निदा नवाज़
Kavita Kosh से
आओ
आज इस विशाल धरती पर
शान्ति की एक चादर बिछाएं
और यह प्रतिष्ठित करें
कि सारी मानवता की सफलता
केवल शान्ति में है।
आओ कि
प्रकृति के इस मोहक चित्र से
आक्रोश की परत उठाएं
आओं
मारा-मरी अब बन्द करें हम
संकीर्णता से न डरें हम
भेद-भाव की ज़िद हम छोड़ें
मानवता से मुंह ना मोड़ें
और धरती से
विकट विनाश की छाया हटाएं
शान्ति के ही गीत गाएं
और आज
इस धरती पर खिंची गई
सारी आबड-खाबड़ सीमाएं
मिटाएं
और फिर
सीमा हो तो नीलगगन की
भूख प्यास मिट जाए जग की
जीने को हर प्राण अकेला
हो फिर आतुर.