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सीमा / संतोष अलेक्स
Kavita Kosh से
चावल की खेती करने के लिए
जगह ढूढ़ते-ढूँढ़ते
सीमा पर पहुँचा
इस पार औ’ उस पार
एक ही सूर्य-चाँद
बारिश
हवा
तूफ़ान
बाडा जानता है नफ़रत के बीज बोनेवाले को
शतरंज के मोहरे-सा
घोडा़, हाथी, रथ
सिपाही आगे बढ़ने लगे
राजा की मृत्यु नहीं होती
हारे या जीते
वह राजा ही है
बस,
सीमा पर अंतिम मौत
मेरी हो !