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सुंदर के बग़ै़र / लालित्य ललित

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आटे की चक्की
गेहूं की बोरियां
बेसन की थैलियां
मक्का का कनस्तर
चावल के बोरे
आज उदास हैं !
चुपचाप ताक रहे हैं
बोरे आपस में
बेसन मक्का से पूछती है
मक्का चावल से पूछ रहा है
‘‘सुंदर कहां है’’
चक्की सबको ताक रही है
गद्दी सबको देख रही है
आज उनको
छूने वाला हाथ नहीं है
दुकान नहीं खुली
कई दिन हो गए
मोटे-मोटे चूहे भी
अब उदास हो गए
मक्का, चावल, बेसन
बिजली का स्विच-बोर्ड,
कनस्तर पीपे से लेकर टेलीफ़ोन
सब उदास हो चले ।
दुकान बंद है
आने जाने वाले
ताकते हुए बढ़ जाते हैं
यहां बेसन अच्छा मिलता था
ताज़ा और शुद्ध
गेहूं क्वालिटी का होता था
गृहणियां बात करती चली जाती हैं
अब यह ताला नहीं खुलेगा !
सुंदर नहीं रहा
मधुर, सौम्य आवाज़ का धनी
चला गया और पीछे छोड़ गया
अपना व्यवहार
बूढ़ा पिता, लाचार मां, बेबस पत्नी
और छोटे बच्चे
दुकान बंद पड़ी है
अख़बार में खबर छपी थी --
‘‘एक सड़क दुर्घटना में
दिल्ली निवासी सुंदर यादव की
दर्दनाक मौत’’ ।