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सुअवसर है / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
Kavita Kosh से
कामना है चूम लूँ आकाश,क्यों ?
किन्तु आहत का चुके विश्वास,क्यों ?
वायु की वैशाखियाँ पहने हुए,
कर रहे हैं स्वर्ग की हम आस, क्यों ?
रत्न ही तुमने बटोरे आज तक-
लग रहे हैं किन्तु बन्धु ! उदास क्यों ?
जिन्दगी के रंग हैं कितने सखे !
एक क्षण दुख एक क्षण है हास,क्यों ?
यह सुअवसर है, नहीं है जिन्दगी,
कर रहा फिर भी समय का नाश, क्यों ?
कर्म-पथ पर जो डटे हटते नहीं,
हैं उन्हीं के हेतु घन सन्त्रास, क्यों ?
प्रेरणाएँ जब रहीं मिलती तुझे,
खेलता ही रह गया फिर ताश क्यों ?
मैं जिन्हें अपनत्वधन देता रहा,
कर रहे वे लोग ही उपहास क्यों ?