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सुकर: दुष्कर / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
महज़
दिन बिताना सरल है,
जीना कठिन !
ज़िन्दगी को काटना
कितना सहज है !
खण्डित व्यक्तित्व के
धागों / रेशों को
सहेजना
सँवारना
सीना कठिन !
केवल
समय-असमय
उगलने को गरल है
पीना कठिन !
महज़
दिन बिताना सरल है
जीना कठिन !