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सुख! क्यों / वाल्टर सेवेज लैंडर / तरुण त्रिपाठी

सुख! क्यों इस कदर उजाड़ते हो यह हृदय
इसकी उत्तुंग बेला में?
मैं उसे देख सकता था, मैं विदा ले सकता था
और लेकिन बस आह भर कर रह गया!

भटकने के, निहारने के, स्पर्श करने के
हर एक युवानी आकर्षण पर...
क्यों छीन लेते हो इतना सब कुछ,
या देते हो इतना सब कुछ?