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सुखद सबेरा / संज्ञा सिंह
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खिलखिलाकर उतरी सुबह
उसके होठों पर
ख़ुशी
पसर के बैठी
घर के कोने-कोने
छुमक रही थी
ठुमक रही थी
जैसे नन्हीं बच्ची के पाँवों की पैजनिया
उसके भीतर
सुखद सबेरा
झाँक रहा था
उसके मुख पर हौले-हौले