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सुखद सावन आ रहा / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

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लो ग्रीष्म का आतप मिटाने सुखद सावन आ रहा॥

था ताप भीषण ग्रीष्म का
आतुर विकल थे लोग सब,
सीमा सहन की टूटती
रवि पर लगा अभियोग सब।

अंकुर उगा कर भूमि की चुनरी हरित रँगवा रहा।
लो ग्रीष्म का आतप मिटाने सुखद सावन आ रहा॥

बादल क्षितिज से उठ रहे
धूसर गगन का रंग है ,
थी धूप बरसी आग सी
पश्चिम दिशा भी दंग है।

चुन तप्त अंगारे धरा पर है सुमन बिखरा रहा।
लो ग्रीष्म का आतप मिटाने सुखद सावन आ रहा॥

फिर स्नेह की कलियाँ खिलीं
मधुमय सरस जग हो गया ,
कुश - कण्टकों से था भरा
जो पुष्पमय मग हो गया।

है बरसता बन बूँद सुख की सभी के मन भा रहा।
लो ग्रीष्म का आतप मिटाने सुखद सावन आ रहा॥