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सुखिया / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
सुकाल से
अकाल तक का
जीवंत वृतांत है
गांव से आया सुखिया ।
पड़ा है
शहर में फुटपाथ पर
अपने परिवार के संग
ज्यों पड़ा हो
एक कविता संग्रह अनछुआ
किसी पुस्तकालय में ।