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सुखी रहे दिन / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
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सुखी रहे दिन
यही मन्त्र जप रहीं हवाएँ
छुवन फूल की हुई धूप - महकी पगडंडी
प्रभु की महिमा बाँच रही मन्दिर की झंडी
घर-घर में हैं
रामजन्म की हुईं कथाएँ
चैती गाती हुई धूप ने छुआ देह को
साँस-साँस में आँक रही वह सहज नेह को
सुरज देवता
घर-भर को दे रहे दुआएँ
दिन पवित्र है - अवधपुरी में उत्सव होता
सोच रहे हम - क्यों पड़ोस का बच्चा रोता
झेल रहीं
क्यों सिया अवध में भी विपदाएँ