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सुखी लोग / संजय कुंदन

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सुखी लोगों ने तय किया था कि अब केवल सुख पर बात होगी
सुख के नाना रूपों-प्रकारों पर बात करना
एक फ़ैशन बन गया था यहाँ

सरकार भी हमेशा सुख की ही बात करती थी
उसका कहना था कि वह सबको सुखी तो बना ही चुकी है
अब और सुखी बनाना चाहती है
उसके प्रवक्ता रोज़ सुख के नए आँकड़े प्रस्तुत करते थे
सरकार के हर फैसले को सुख कायम करने की दिशा में
उठाया गया क़दम बताया जाता था
लाठी और गोली चलाने का निर्णय भी इसमें शामिल था

 इस सब से दुख को बड़ा मज़ा आ रहा था
 वह पहले से भी ज़्यादा उत्पाती हो गया था
 वह अट्टहास करता और कई बार नंगे नाचता

पहले की ही तरह वह कमज़ोर लोगों को ज़्यादा निशाना बनाता
वह खेतों का पानी पी जाता, फ़सलें चट कर जाता
छीन लेता किसी की छत और किसी की छेनी-हथौड़ी

यह सब कुछ खुलेआम हो रहा था पर
अख़बार और न्यूज-चैनलों में केवल मुस्कराता चेहरा दिखाई पड़ता था
हर समय कोई-न-कोई उत्सव चल रहा होता मनोरंजन-चैनलों पर

वैसे सुखी लोगों को भी दुख बख़्शता नहीं था
कई बार अचानक किसी के सामने आकर वह उस पर थूक देता था
सुखी व्यक्ति इसे अनदेखा करता
फिर चुपके से रुमाल निकल कर थूक पोंछता
और चल देता किसी जलसे के लिए ।