सुखैल टटैल एकटा बेङ
दराड़ि सँ आएल ऊपर
रहि गेल तकैत आकाश दिश
पसरल छलइ लग पासमेँ
शुष्क नोरस क्षत विक्षत भूमि
शून्यप्राय प्रांतर, सहस्त्रधा बिदीर्ण
वातावरण बइशक्खा, दारूण निर्लिप्त
सूर्य क मध्याह्नोत्तर प्रखर ताप-
खंड मेधक क्षणिक अभिसारें एक रती स्निग्ध...
सुखैल टटैल एकटा बेङ
तकइ छल निरन्तर आकाश दिश
भेटल होइक कदाचित ओकरा
पूर्व सूचना असामयिक वृष्टिक
महाराज इद्र कएने हेथिन टेलीपेथी...
किंबदन्तीक मोताबिक -
बेङे टा जनइए मेघक भाखा...
आइ अथवा काल्हि अथवा परशू
हेबेटा करत वृष्टिपात....
कृशकाय ई दर्दुर बेचारे
ने जानि कती काल धरि
रहताह तकैत आकाश दिश।
अहेतुक नहि थीक हिनक ई त्राटक
हेबेटा करत वृष्टिपात
आइ अथवा काल्हि अथवा परशू